अनूठा ब्रजः जहां 10 का सिक्का नहीं पर ’चवन्नी चलती’ है
-चलन से बाहर हो चुकी मुद्रा में होता है करोड़ों का कारोबार
मथुरा। ब्रज अनूठा है तो कोई कहता है कि तीन लोक से न्यारी है मथुरा। मुद्रा चलन के मामले में भी यह कहावत झूंठी नहीं। यहां 10 का सिक्का नहीं चलता लेकिन चलन से बाहर हो चुकी चवन्नी खूब चलती है। ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा करने आये लाखों श्रद्धालुओं को भी इस अनुभव से दो चार होना पडा। ऑटो, ई रिक्शा चालक ही नहीं दुकानदार भी 10 का सिक्का लेने से आनाकानी करते नजर आये। जबकि श्रद्धालुओं को ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा और समूचे गोवर्धन में चवन्नी (25 पैसे) चलाने में कोई दिक्कत नहीं हुई।
सच मानिये यहां भक्तों की चवन्नी जमकर चलती है। ब्रज भाषा में चवन्नी चलने का मतलब होता है किसी की खूब चल रही हो, लेकिन हम जिस चवन्नी की बात कर रहे हैं वह कभी चलन में रही भारतीय मुद्रा है। 30 जून 2011 में रिजर्व बैंक के आदेश पर 25 पैसे के सिक्के का चलन बंद कर दिया गया था। बाद के दिनों में 50 पैसे का चलन खुद ब खुद बंद होता गया। आप को यह जानकार आश्चर्य होगा कि बंद या चलन से बाहर हो चुकीं इन मुद्राओं में करोड़ों का कारोबार आज भी हो रहा है। उत्तर भारत के सबसे भीड़भाड़ वाले करोड़ी मुडिया मेला में चवन्नी, अठन्नी ही नहीं, पांच, दस, बीस पैसे के सिक्के भी खूब चले। मुड़िया पूर्णिमा मेले में हर वर्ष करोड़ों का कारोबार होता है। मंदिरों में चढ़ावे के लिए श्रद्धालुओं में रेजगारी की काफी मांग रहती है। एक रुपये के सिक्के से लेकर पांच रुपये तक के सिक्कों की मेले में बाकायदा दुकानें हैं। कुछ लोग चादर पर रेजगारी रखकर परिक्रमार्थियों को बेच रहे हैं। दर होती है 100 रुपये के 70 से 80 रुपये या और कम। वह सिक्के वापस लौट कर उन्हीं के पास आ जाते हैं। इससे ज्यादातर को डबल से अधिक मुनाफा होता है। मानसी गंगा मुकुट मुखारविंद मंदिर के सेवायत संजय शर्मा व मनोज लंबरदार ने बताया कि मंदिर से 100 रुपये की रेजगारी को 80 व 90 रुपये में लेकर जाते हैं और परिक्रमा मार्ग में श्रद्धालु से 100 रुपये वसूल कर उसे 70 या 80 रुपये के सिक्के दे देते हैं। इससे यह अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं। मुड़िया मेले में रेजगारी के इस कारोबार के लिए पश्चिम बंगाल से लेकर सिक्किम तक के लोग पहुंचते हैं। उड़ीसा, महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और यूपी के इलाहाबाद, बनारस, हरिद्वार, अयोध्या, मथुरा के अन्य कस्बों से आए हुए हैं।
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