करोडी मेला का नाम ऐसे पडा मुड़िया मेला, 466 वर्ष पुरानी है परंपरा
-सनातन गोस्वामी के गोलोक गमन पर अनुयाई शिष्यों ने सिर मुढ़ाकर लगाई थी गिरिराज परिक्रमा
मथुरा। मुडिया मेला गुरु शिष्य परंपरा का अनूठा उदाहरण है। इसी दिन शिष्य गुरु से गुरु दीक्षा ग्रहण करते हैं। गोवर्धन में यह मुड़िया मेला के नाम से प्रसिद्ध है। पांच दिवसीय मुड़िया मेला में करोड़ो श्रद्धालु भक्त गोवर्धन पहुंच कर गिरिराज जी की परिक्रमा लगाते हैं। मुड़िया पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है। अब से 466 साल पहले सनातन गोस्वामी के गोलोक गमन में प्रवेश करने पर उनके अनुयाई शिष्यों ने सिर मुढाकर परिक्रमा लगाई थी। तभी से मुड़िया पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। मुड़िया मेला 17 जुलाई से शुरू हो गया है और 22 जुलाई तक चलेगा। मुड़िया शौभा यात्रा की तैयारियां शुरू हो गई हैं। चैतन्य महाप्रभु से प्रभावित होकर उन्होंने मंत्री पद त्याग दिया और वृंदावन आ गए। यहां चौतन्य महाप्रभु से दीक्षा प्राप्त कर वह गोवर्धन में मानसी गंगा के तट स्थित चक्लेश्वर मंदिर के निकट कुटी बनाकर रहने लगे। वे वृद्धावस्था में भी प्रतिदिन गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा किया करते थे। सनातन गोस्वामी का अब से 465 वर्ष पहले आषाढ़ पूर्णिमा संवत 1558 को निधन हो जाने पर उनके शिष्यों ने परंपरानुसार सिर मुड़वा कर सनातन गोस्वामी की अर्थी के साथ गाते बजाते हुए कीर्तन कर परिक्रमा लगाई। सनातन गोस्वामी के निर्वाण की तिथि शिष्यों के लिए पुण्यतिथि बन गई।अनुयाई शिष्य सिर मुंडन कराकर शोभा यात्रा निकालते हैं। इस बार 465 वीं मुड़िया शोभा यात्रा निकाली जाएगी। सनातन गोस्वामी पश्चिमी बंगाल के शासक हुसैन शाह के दरबार में मंत्री थे। चौतन्य महाप्रभु से प्रभावित होकर उन्होंने मंत्री पद त्याग दिया और वह वृंदावन आ गए। यहां चौतन्य महाप्रभु से दीक्षा प्राप्त कर, वह गोवर्धन में मानसी गंगा के तट स्थित चक्लेश्वर मंदिर के निकट कुटी बनाकर रहने लगे। वे वृद्धावस्था में भी प्रतिदिन गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा किया करते थे।
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