राशन माफियाओं के आगे अधिकारी हुए धराशाई नहीं कर पा रहे कार्यवाही
अलीगढ़। राशन की कालाबाजारी अलीगढ़ में चर्म पर है। राशन माफिया गोदाम खोल कर बैठे हुए हैं और जमकर कालाबाजारी की जा रही है। सड़कों पर दिन रात राशन माफियाओं के गुर्गे बिक्की वाले बनकर घर घर से चावल इकट्ठा करते हैं और गोदामों तक पहुंचाते हैं। 2018 में 9 राशन माफिया घोषित किए गए थे। उसके बाद 2020 में तत्कालीन जिलाधिकारी चंद्रभूषण सिंह ने राशन माफियाओं पर शिकंजा कसने के लिए गैंगस्टर और गुण्डा एक्ट की तैयारी भी की थी लेकिन उसके बाद से आज तक राशन माफिया पैर पसारते गए और अधिकारी लंगड़े और लूले हो गए जिसके चलते योगी सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति को पलीता लगाते नजर आ रहे हैं।
2018 में घोषित जिले के टॉप 10 राशन माफिया
-सुबोध बंसल पुत्र महेश बंसल-विकास लोक कालोनी गांधीपार्क
-सचिन अग्रवाल पुत्र महेश बंसल-विकास लोक कालोनी गांधीपार्क
-गजेंद्र पाल पुत्र इंद्रपाल सिंह-केशव बिहार धनीपुर
-सुमीत कुमार पुत्र गजेंद्र पाल-केशव बिहार धनीपुर
-राजेश कुमार पुत्र नर सिंह पाल-कमालपुर गांधीपार्क
-शिव कुमार पुत्र नरसिंह पाल-कमालपुर गांधीपार्क
-हरिओम गुप्ता पुत्र राजकुमार-श्यामनगर अलीगढ़
-पंकज वार्ष्णेय पुत्र विधिश चंद्र-किशन बिहार कालोनी मित्र नगर धर्मकांटे के पीछे बन्ना देवी
-बशी उर्फ हरवंश पुत्र भीष्म सिंह-ग्राम तेहरा सहाराकलां
-बबलू सिंह पुत्र भगवान सिंह-मोहकमपुर इगलास
2018 में राशन माफिया घोषित किए जाने के बाद फरवरी 2020 में प्रशासन ने पूर्ति विभाग द्वारा जारी राशन माफियाओं की सूची पर कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी जिसमें पुलिस से पूछा गया था कि माफिया के खिलाफ पूर्व में दर्ज केस की क्या प्रगति है। चार्जशीट दाखिल हुई है अथवा नहीं, यदि दाखिल हुई है तो कौन कौन सी धाराएं लगाई गई हैं। केस न्यायालय तक पहुंचा अथवा नहीं, पहुंचा है तो वहां उक्त मामले की क्या स्थिति है। डीएम चंद्रभूषण सिंह ने पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर इन सभी माफिया के खिलाफ गुंडा एक्ट अथवा गैंगस्टर एक्ट में कार्रवाई की तैयारी कर दी थी। उसके बाद अधिकारियों ने सूचना मिलने पर कार्यवाही तो की लेकिन गैंगस्टर और गुण्डा एक्ट का अता पता नहीं चल सका।
सूचनाओं के आधार पर अधिकारियों द्वारा जनवरी 2022 से नवंबर 2022 तक विभिन्न कार्रवाई करते हुए 37 मुकदमें दर्ज कराए गए थे। कालाबाजारी के इन मुकदमों में 27 मुकदमे सिर्फ चावल के थे। विभाग ने भारी संख्या में सरकारी चावल भी बरामद किया था जिससे स्पष्ट था कि चावल पर राशन माफिया पूरी तरह से निर्भर हैं।
विभाग द्वारा उस समय बताया गया था कि राशन माफिया उपभोक्ता और राशन डीलरों से चावल खरीदते हैं। इसके लिए वह उन्हें 10-12 रुपए प्रति किलो के हिसाब से भुगतान करते हैं। जब उपभोक्ता राशन की दुकान से चावल खरीदकर ले जाते हैं, तो इसके बाद माफियाओं के लोग फेरी वाले बनकर गांवों में जाते हैं और यह चावल खरीद लेते हैं। वहीं राशन डीलरों से भी इनके संपर्क हैं। कई कोटेदार भी ऐसे हैं, जो इन्हें बल्क में चावल उपलब्ध कराते हैं।
